कुंडली में संतान योग में बाधा बनने वाले कुछ विचारणीय बिंदु - कुंडली में संतान योग को मजबूत बनाने के उपाय
जिस प्रकार कुछ विशेष योग कुंडली में संतान सुख की प्राप्ति करवाते हैं तो कुछ ऐसे योग भी होते हैं जो संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं। ऐसे ही कुछ योग निम्नलिखित हैं:
• यदि पंचम भाव का स्वामी अष्टम भाव में नीच राशिगत हो और पंचम भाव पर पाप ग्रहों का ज्यादा प्रभाव हो तो संतान प्राप्ति में समस्या आती है।
• यदि पंचम भाव और छठे भाव के स्वामियों के मध्य राशि परिवर्तन हो तो कई बार गर्भपात की संभावना हो सकती है।
• पंचम भाव पर राहु और शनि की संयुक्त दृष्टि होने से संतान सुख की कमी होती है या फिर मृत संतान हो सकती है।
• पंचम भाव में सूर्य का प्रभाव होना या सूर्य का स्थित होना संतान सुख में कमी करता है। हालांकि सूर्य ग्रह के उपाय करने के बाद एक संतान की प्राप्ति संभव हो सकती है।
• यदि पंचम भाव में शनि और राहु एक साथ विराजमान हों तो श्रापित दोष का निर्माण होता है, जो पूर्व जन्म के कर्मों के कारण संतानहीनता देता है।
• यदि कुंडली के पंचम भाव में शनि और मंगल विराजमान हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है।
• यदि कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव व सप्तम भाव से सूर्य, बुध और शनि का संबंध हो तो संतान बाधा उत्पन्न होती है।
• यदि मंगल की दृष्टि पंचम भाव पर हो तो संतान की हानि या फिर कष्ट पूर्ण संतान मिलती है। अधिकांश स्थिति में ऑपरेशन के बाद ही संतान का जन्म होता है। यदि मंगल उस कुंडली के लिए शुभ है तो संतान प्राप्ति हो जाती है, अन्यथा संतान होने में समस्या आती है।
• यदि कुंडली के द्वादश भाव में पंचम भाव का स्वामी और देव गुरु बृहस्पति युति कर रहे हों तथा कुंडली के अष्टम भाव का स्वामी और मंगल पंचम भाव में विराजमान हो तो संतान सुख की कमी होती है।
• यदि कुंडली के पंचम भाव पर राहु और मंगल का संयुक्त प्रभाव हो तो सर्प दोष बन जाता है और संतान होने में बाधा उत्पन्न होती है।
• यदि पंचम भाव का संबंध सूर्य और शनि से हो जाए अथवा राहु या केतु से दृष्टि संबंध हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आ जाती है।
• यदि अष्टकवर्ग पद्धति में बृहस्पति के अष्टक वर्ग में बृहस्पति से पंचम भाव शुभ बिंदुओं से रहित हो तो संतान होने में बाधा उत्पन्न होती है और संतान सुख की कमी होती है।
• यदि कुंडली में शुक्र ग्रह, बुध, शनि या राहु के साथ स्थित हो और पंचम भाव तथा सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव अधिक हो तो शुक्र की पीड़ित अवस्था से वीर्य दोष उत्पन्न हो जाता है और पुरुष संतानोत्पत्ति में सक्षम नहीं हो पाता है।
• यदि कुंडली के सप्तम भाव का स्वामी पीड़ित अवस्था में हो और कमजोर हो तथा पंचम भाव में विराजमान हो तो भी संतान सुख में कमी हो सकती है।
• कारकोभावनाशाय सिद्धांत के अनुसार यदि संतान कारक बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित हों और उन पर अशुभ ग्रहों का अधिक प्रभाव हो तो भी संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
• यदि कुंडली का लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश और देव गुरु बृहस्पति, ये सभी ग्रह कमजोर और बल हीन अवस्था में हों तो संतान सुख में कमी करते हैं।
• कुंडली के लग्न भाव और चंद्रमा से पंचम भाव तथा बृहस्पति से भी पंचम भाव यदि पीड़ित अवस्था में हों या पाप कर्तरी में हों तो संतान बाधा आती है।
• यदि वृषभ, सिंह, कन्या अथवा वृश्चिक राशियों में से कोई राशि पंचम भाव में हो और कोई अशुभ योग बन रहा हो तो संतान प्राप्ति में विलंब होता है या समस्या आती है क्योंकि ये अल्पसुत राशियां कहलाती हैं।
• यदि कुंडली के लग्न भाव, चंद्र राशि और गुरु अधिष्ठित राशि से पंचम भाव पर पाप ग्रहों का अधिक प्रभाव होने पर भी संतानहीनता हो सकती है।
कुंडली में संतान योग को मजबूत बनाने के उपाय
यदि आपकी कुंडली में संतान योग कमजोर है या आपको संतान प्राप्ति में समस्या आ रही है तो आपको कुछ विशेष उपाय करने चाहिए, जिससे आप के जीवन में संतान की वृद्धि हो और आप संतान प्राप्त कर पाने में भी सफल हो जाएं। ऐसे कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:
• कुंडली के पंचम भाव के स्वामी को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए।
• कुंडली में बृहस्पति की स्थिति को देखकर उनसे संबंधित उपाय करने चाहिए ताकि देव गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त हो सके और संतान प्राप्ति का सुखद समाचार मिले।
• संतान की कामना रखने वाले दंपत्ति को अपने कमरे में बाल कृष्ण की तस्वीर या चित्र लगाने चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा समय आपका ध्यान उन पर रहे और प्रतिदिन उन्हें मक्खन मिश्री का भोग लगाकर स्वयं उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना चाहिए।
• संतान की कामना रखने वाले पति – पत्नी को प्रतिदिन संतान गोपाल मंत्र का निश्चित संख्या में जप करना चाहिए।
• यदि आप चाहें तो आप संतान गोपाल मंत्र ”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः” का संपूर्ण अनुष्ठान भी संपन्न करा सकते हैं।
• पूर्णमासी का व्रत रखने से भी ईश्वर कृपा से संतान प्राप्ति की संभावना बनती है।
• देव गुरु बृहस्पति संतान के मुख्य कारक होने के कारण यदि कुंडली में शुभ बृहस्पति हैं तो उनसे संबंधित रत्न धारण करना या उनका मंत्र जाप करना भी संतान प्राप्ति में सहायक होता है। यदि कुंडली के लिए बृहस्पति अशुभ हैं तो ऐसी स्थिति में गुरु पूजन शुभ फलदायी हो जाता है।
• संतान प्राप्ति के लिए आपको बृहस्पतिवार के दिन किसी मंदिर, विद्यालय अथवा बगीचे में केले के वृक्ष को लगाना चाहिए और नियमित रूप से उसकी पूजा करनी चाहिए।
• इसके अतिरिक्त पीपल वृक्ष को लगाना भी वंश वृद्धि का कारण बनता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पीपल वृक्ष को लगाता है और उस को पालता है, उसके वंश का कभी नाश नहीं होता है।
• यदि कुंडली में पितृदोष का निर्माण हो रहा हो, जिसकी वजह से संतान बाधा आ रही है तो पितृदोष की शांति के लिए गया में पितृ तर्पण कराएं अथवा पितृ गायत्री मंत्र का जाप कराएं अथवा प्रतिदिन अपने घर में हरिवंश पुराण का पाठ करें या करवाएं।
• आपके लिए संतान की कामना से प्रदोष व्रत करना भी लाभदायक रहेगा। आपको कम से कम 11 प्रदोष व्रत रखने चाहिए तथा भगवान शिव का गाय के दूध से रुद्राभिषेक संतान प्राप्ति के उद्देश्य से करना चाहिए।
• प्रत्येक अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करें और चावल की खीर बनाकर पितरों के निमित्त मंदिर में लेकर जाएं।
• इसके अतिरिक्त पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं तथा कौवे, चींटी आदि को दाना डालें।
• यदि कुंडली में कोई विशेष ग्रह संतान प्राप्ति में बाधा बन रहा है तो उसके लिए भी कुछ विशेष उपाय किए जाने चाहिए।
• यदि कुंडली में सूर्य के कारण संतान बाधा हो रही है तो पितृदोष की शांति कराएं या पितृ गायत्री का जाप कराएं। अपने घर में हरिवंश पुराण का पाठ कर सकते हैं। साथ ही सूर्य के बीज मंत्र का जाप करवाकर सूर्य की शांति कराएं। सूर्य की पीड़ा पितरों की पीड़ा या उनका श्राप हो सकती है। रविवार के दिन बेल, लाल चंदन, लाल पुष्प और गुड़ तथा तांबे का दान करना चाहिए। यदि सूर्य उस कुंडली के लिए शुभ ग्रह है तो माणिक्य रत्न अथवा एक मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
• यदि चंद्रमा संतान प्राप्ति में बाधा बन रहे हैं तो रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग जाकर दर्शन करने चाहिए अथवा गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। चंद्रमा की पीड़ा माता के श्राप या मां दुर्गा के कुपित हो जाने के कारण हो सकती है। इसको दूर करने के लिए चंद्रमा के बीज मंत्र का जाप कराएं। चंद्रमा की शांति कराएं। सोमवार का व्रत रखें और सोमवार के दिन सफेद वस्त्र, दूध, दही, चांदी, आदि का दान करें। यदि चंद्रमा उस कुंडली के लिए शुभ ग्रह हैं तो मोती रत्न अथवा दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
• यदि मंगल ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आती है तो मंगल ग्रह की शांति कराएं और मंगल के बीज मंत्र का जाप कराएं। मंगल ग्रह की बाधा भाई के श्राप के कारण हो सकती है। इसके अतिरिक्त मंगलवार के दिन लाल फूल, गुड़, शक्कर, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन, सिंदूर, लाल चंदन या मसूर की दाल का दान करना चाहिए। यदि मंगल ग्रह उस कुंडली के लिए शुभ हैं तो मूंगा रत्न अथवा तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
• यदि कुंडली में बुध ग्रह की पीड़ा संतान प्राप्ति में बाधा बन रही है तो इसे दूर करने के लिए बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप करना अथवा विष्णु पुराण का विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। बुध ग्रह की पीड़ा मौसी, बुआ अथवा मामा के श्राप के कारण हो सकती है। बुधवार के दिन कपूर, काँसे का बर्तन, साबुत मूंग, खांड, हरे रंग के वस्त्र और फल का दान करना चाहिए तथा तुलसी के पौधे के नीचे संध्या समय में दीपक जलाना चाहिए। यदि बुध ग्रह कुंडली के लिए शुभ हैं तो पन्ना रत्न अथवा चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
• यदि संतान कारक होकर भी कुंडली में देव गुरु बृहस्पति कमजोर अवस्था में हैं या उनकी वजह से भी संतान योग में बाधा उत्पन्न हो रही है तो इसे ब्राह्मण का श्राप या गुरु का श्राप माना जा सकता है। इसको दूर करने के लिए बृहस्पति के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। बृहस्पतिवार के दिन पीपल और केले के वृक्ष को जल चढ़ाना चाहिए तथा देसी घी, हल्दी, बेसन या चने की दाल, पीले रंगों के वस्त्र और स्वर्ण का दान करना चाहिए। किसी विद्वान ब्राह्मण अथवा विद्यार्थी की मदद करनी चाहिए। यदि बृहस्पति उस कुंडली के लिए शुभ हैं तो पुखराज रत्न अथवा पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
• यदि कुंडली में शुक्र ग्रह संतान प्राप्ति में बाधक है तो शुक्र ग्रह के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। शुक्रवार के दिन महिला साध्वी या महिला पुजारी को श्रृंगार की सामग्री भेंट करनी चाहिए। शुक्र ग्रह की पीड़ा स्त्री श्राप या कुलदेवी के श्राप के कारण हो सकती है। शुक्रवार को ही आटा, चावल, दही, मिश्री, सफेद चंदन, इत्र और सफ़ेद वस्त्रों का दान करना चाहिए। यदि शुक्र कुंडली के लिए योग कारक ग्रह है अथवा शुभ ग्रह है तो आपको हीरा अथवा हीरे की अनुपलब्धता होने पर ओपल रत्न धारण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त आप छह मुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
• यदि कुंडली में शनि ग्रह संतान प्राप्ति में बाधक हैं तो पीपल का पेड़ लगाना चाहिए और शनि ग्रह के बीज मंत्र का जाप करवाकर शनि ग्रह की शांति करानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शनिवार के दिन नीले पुष्प, काले तिल, साबुत उड़द, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, कंबल, काले रंग के वस्त्र, आदि का दान करना चाहिए। यदि उस कुंडली के लिए शनि ग्रह योग कारक अथवा शुभ ग्रह हैं तो नीलम रत्न धारण करना चाहिए। नीलम की अनुपलब्धता होने पर ऐमेथिस्ट अर्थात कटैला या फिर सात मुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
• यदि राहु ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तो शनिवार के दिन काले उड़द, तिल, लोहा, सतनजा, नारियल, आदि का दान करें। इसके साथ ही आप नीले वस्त्र या फिर रांगे की गोली का भी दान कर सकते हैं। मछलियों को चारा भी डाला जा सकता है। राहु ग्रह की शांति कराएं। राहु के कारण सर्प दोष बन सकता है या सर्प श्राप भी हो सकता है, इसलिए नाग पंचमी के दिन सर्पों की पूजा करें और अमावस्या अथवा सोमवार के दिन शिवलिंग पर चांदी का नाग नागिन का जोड़ा चढ़ाएं। यदि राहु उस कुंडली में शुभ परिणाम देने वाला ग्रह है तो राहु के शुभ प्रभाव को बढ़ाने के लिए गोमेद रत्न अथवा आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
• यदि केतु ग्रह संतान प्राप्ति में बाधा बन रहा है तो उसकी शांति के लिए केतु के बीज मंत्र का जाप करें अथवा करवाएं तथा ब्राह्मणों को आदर पूर्वक भोजन कराएं और सतनजा व नारियल का दान करें। यदि केतु उस कुंडली में शुभ परिणाम देने में सक्षम है तो लहसुनिया या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण किया जा सकता है।
• इसके अतिरिक्त किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाकर उनके द्वारा बताए गए उपाय करने से भी आप अपने जीवन में संतान योग को मजबूत बना सकते हैं।